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ग़ज़ल
इस से पहले ऐसी शिद्दत तो अंधेरे में न थी
रौशनी का हर्फ़ होंटों से जुदा होता न था
जावेद अख़्तर बेदी
ग़ज़ल
दिन को दफ़्तर में अकेला शब भरे घर में अकेला
मैं कि अक्स-ए-मुंतशिर एक एक मंज़र में अकेला